सोमवार, 9 मई 2011

नर्तकी

एक बार बिर्काशा के राजा के दरबार में एक नर्तकी अपने वादक के साथ आई | और वह दरबार में शामिल कर ली गयी, और उसने राजकुमार के सामने वीणा और बांसुरी और जिट्रा के संगीत पर नृत्य किया |

उसने अग्नि की लपटों का नृत्य किया, और तलवारों और भालों का नृत्य किया; सितारों का नृत्य, और आसमानों का नृत्य भी उसने किया. और फिर उसने हवा में लचकते हुए फूलों का नृत्य किया |

इसके बाद वह राजा के सिंहासन के सामने खड़ी हुई और शरीर को झुकाकर उसे सलाम किया | राजा ने उसे नजदीक आने को कहा, और उससे कहा, "हे सुंदरी, दया और ख़ुशी देने वाली कन्या, यह कला तुमने कहाँ सीखी ? और कैसे संभव हुआ कि अपनी लय और अपनी ताल में समाविष्ट हर तत्व को तुमने नियंत्रित किया हुआ है |" 

और तब नर्तकी ने पुन: उसे झुककर सलाम किया, और कहा, "हे शक्तिशाली और दयालु भगवन | मैं आपके सवालों का जवाब नहीं जानती | मैं सिर्फ यही जानती हूँ कि : एक विचारक की आत्मा उसके मस्तिष्क में निवास करती है, एक कवि की उसके ह्रदय में; एक गायक की आत्मा उसके गले में विचरण करती है, लेकिन एक नर्तक की आत्मा उसके पूरे शरीर से जुडी होती है |"