सोमवार, 30 जनवरी 2012

पागल

पागलखाने के आँगन में मैं एक युवक जिसका चेहरा जर्द , प्यारा और आश्चर्यों से भरा था, से मिला । और मैं उसके पास एक बैंच पर बैठा, और मैंने कहा, "तुम यहाँ क्यों हो ?"
और उसने मेरी तरफ अचम्भे से देखा, और उसने कहा, "यह एक अनुचित सवाल है , फिर भी मैं आपको जवाब दूंगा । मेरे पिता मुझे अपनी प्रतिकृति बनाना चाहते थे; और मेरे चाचा भी । मेरी माता के अनुसार मुझे उनके जहाजी पति के उत्तम उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए । मेरा भाई सोचता है कि मुझे उसके जैसा बनना चाहिए, एक उम्दा खिलाड़ी ।

"और मेरे शिक्षक भी, दर्शनशास्त्र के पंडित, और संगीत विशारद, और तर्कशास्त्री, वे सब भी दृढ़ - संकल्प लिए थे, और हर कोई मुझे बस अपने चेहरे का आईने में पड़ा प्रतिबिम्ब बनाना चाहते थे ।

"इसलिए मैं इस जगह पर आया हूँ, मुझे यहाँ ज्यादा स्वस्थ चित लगता है । कम से कम, मैं यहाँ पर मैं बन कर रह सकता हूँ "

फिर अचानक वह मेरी ओर मुड़ा और उसने कहा, "लेकिन आप बताओ, क्या आपको भी इस जगह शिक्षा और अच्छे परामर्श ने धकेला है ?"

और मैंने कहा , "नहीं, मैं यहाँ सिर्फ देखने को आया हूँ।"

और उसने जवाब दिया, "ओह, आप दीवार के दूसरी तरफ पागलखाने में रहने वाले लोगों में से एक हो ।"



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