बुधवार, 30 मार्च 2011

साधू और जानवर

एक बार कहीं हरी पहाड़ियों के बीच एक साधू रहता था | वह निर्मल आत्मा तथा स्वच्छ ह्रदय वाला था | और जमीन पर चलने वाले जानवर और आसमान में उड़ने वाले पक्षी सभी उसके पास आते थे और वह उनसे बातें करता था | वे बेहद प्रसन्नता से उसे सुना करते थे, और उसके आसपास जमा हो जाते थे, और रात घिर जाने तक नहीं जाते | तब वह उन्हें आशीर्वाद देकर उनके घर भेज देता, हवाओं और जंगलों में |

एक शाम जब वह उनसे प्रेम के बारे में बात कर रहा था, एक चीते ने अपना सर उठाया और साधू से कहा, "आप हमसे प्रेम के बारे में कह रहे हैं | महोदय, हमें बताइए, आपकी प्रेमिका कहाँ हैं ?"

और तब साधू ने कहा, "मेरी कोई प्रेमिका नहीं है |"

तब पशु पक्षियों के झुण्ड से आश्चर्य का शोर उठने लगा, और वे आपस में कहने लगे, "ये कैसे हमें प्रेम के बारे में बता सकता है जबकि ये खुद कुछ भी नहीं जानता ?" और वे सभी सर झुका कर शान्ति से उसे अकेला छोड़कर चले गए |
 
उस रात साधू चटाई पर औंधे मुंह लेटा, और छाती पर हाथ मारकर ज़ार ज़ार रोया |



रविवार, 27 मार्च 2011

कड़कती बिजली






एक तूफानी दिन, एक ईसाई पादरी गिरजाघर में था, और तभी एक गैर ईसाई महिला आई और उसके सामने खड़ी हुई, और उसने कहा, "मैं ईसा को नहीं मानती हूँ, क्या मेरे लिए नरक की यातना से बचने का कोई मार्ग है ?"


और पादरी ने उस महिला को देखा, और उसने उसे ज़वाब देते हुए कहा, "नहीं, मोक्ष का मार्ग केवल उन लोगों के लिए है, जिनका ईसाई मान्यता के अनुसार पानी और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा हुआ हो |"


और जब वह ये कह रहा था उसी समय आसमान से बिजली कडकी और गिरजाघर के ऊपर गिर गयी, गिरजाघर में आग लग गयी |


शहर के लोग दौड़े दौड़े आये, और उन्होंने उस महिला को बचा लिया | लेकिन पादरी आग का भोजन बन चुका था | 

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

दो रानियाँ





शावाकिस राज्य में एक राजा रहता था, और उसकी प्रजा उससे बहुत प्यार करती थी , पुरुष और स्त्री और बच्चे सभी | यहाँ तक की पशु पक्षी भी उसे सलाम करने आते थे |


लेकिन सभी लोग आपस में कहते थे, कि उसकी पत्नी, शावाकिस की रानी उससे प्यार नहीं करती; नहीं , बल्कि वह उससे नफरत करती है |


एक बार पडोसी राज्य की रानी , शावाकिस की रानी से मिलने के लिए आई | दोनों बेहद गर्मजोशी से मिले, और बातें करने लगीं | धीरे-धीरे उनकी बातों में अपने अपने पति का जिक्र आया |


और शावाकिस की रानी ने पूरे उत्साह से कहा, "कई साल तुम्हारी शादी को हो गए हैं , लेकिन आज भी तुम अपने पति के साथ बेहद खुश हो, ये देखकर मुझे कभी कभी ईर्ष्या होती है | मैं तो अपने पति से नफरत करती हूँ | वह सब लोगों का है , बस मेरा नहीं | मैं सही में इस दुनिया की सबसे नाखुश स्त्री हूँ |"


और तब मेहमान रानी ने उसकी ओर देखा और कहा, "सखि , सच ये हैं कि तुम अपने पति, शावाकिस के राजा से बहुत प्रेम करती हो | और, तुमने उन्हें हासिल किया है, और अपना बना के रखा है बिना किसी आडम्बर के, जबकि किसी स्त्री में यौवन उतने समय तक ही रहता है, जितना कि बाग़ में बसंत | लेकिन , मैं और मेरे पति , दोनों दया के पात्र हैं क्योंकि हम मूक धैर्य से सिर्फ एक दूसरे को बर्दाश्त करते हैं, और तुम और बाकी लोग इसे खुशियाँ समझ लेते हैं |"

मंगलवार, 22 मार्च 2011

मेले में





छोटे कस्बे की बेहद खूबसूरत एक लड़की, मेला देखने के लिए आई | उसके गालों पर गुलाब की लालिमा थी , सूर्यास्त मानों उसके बालों में होता हो, और भोर उसके होंठों में मुस्कुराती हो |


इक खूबसूरत अजनबी के निगाह में आते ही सारे नवयुवक तरह तरह के बहानों से उससे मिलने आने लगे | कोई उसके साथ नाचना चाहता था, कोई दूसरा उसके सम्मान में केक काटना चाहता था | सभी उसके कुमुदनी जैसे गालों को चूमना चाहते थे, आखिर ऐसा कौन होगा जो ये नहीं चाहेगा |


बेचारी लड़की को युवकों का व्यवहार देखकर सदमा सा लगा, और उसे सारे लड़के बुरे से मालूम हुए | उसने उन्हें डांटा, कुछेक को थप्पड़ भी मारा | उसके बाद वह वहाँ से भाग गयी |


और घर आते हुए, उस शाम रोते हुए उसने अपने दिल में कहा, "घृणा होती है मुझे, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग हैं | बरदाश्त की हर हद से बाहर |"


साल गुजरा , इस दौरान उस खूबसूरत लड़की ने बहुत से मेलों और उन युवकों के बारे में सोचा | एक दिन वह फिर से उस मेले को देखने गयी | आज भी वह उतनी ही खूबसूरत लग रही थी, जैसे गुलाब की लालिमा उसके गालों पर, सूर्यास्त उसके बालों पर होता हो , और जैसे भोर उसके होंठों पर मुस्कुराती हो |


लेकिन इस बार लड़कों ने उसे देखने के बाद सर झुका लिया , देखकर अनदेखा करने लगे | और पूरा दिन उस लड़की ने अपने को काफी अनचाहा और अकेला महसूस किया |


सांझ के झुटपुटे में घर की ओर जाने वाले रास्ते पर वह लड़की अपने दिल में बहुत रोई, "मुझे घृणा होती है, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग है | बर्दाश्त की हर हद से बाहर |"



सोमवार, 21 मार्च 2011

आँसू और हँसी





नील नदी के किनारे, सांझ के झुटपुटे में, सियार घड़ियाल से मिला और उन्होंने रूककर एक दूसरे को नमस्ते किया |


सियार ने कहा, "सब कैसा चल रहा है, जनाब ?"


घड़ियाल ने जवाब दिया, "बहुत बुरा वक़्त है | कभी कभी अपने दुख दर्द से मैं रोने लगता हूँ, और बाकी लोग कहते हैं, 'ये कुछ नहीं बस घडियाली आँसू हैं |' ये बात मुझे इतनी चुभती है कि क्या बताऊँ |"


तब सियार ने जवाब दिया, "तुम अपने दुख, दर्द की बात करते हो पर एक बार जरा मेरे बारे में भी तो सोचो | मैं इस दुनिया की खूबसूरती, इसके अचरजों, और इसके चमत्कारों को निहारता हूँ, और बहुत खुश होता हूँ | हँसता हूँ, बेहद जोर जोर से, जैसे दिन का उजाला चारों ओर फैलता है | और बाकी लोग कहते हैं, 'ये कुछ नहीं बस सियार की हुआं-हुआं है |'"



रविवार, 20 मार्च 2011

प्रेमगीत





कवि ने प्रेमगीत लिखा, बेहद खूबसूरत, और उसने इसकी कई सारी नक़ल तैयार की, और अपने दोस्तों और जानने वालों को, पुरुष और स्त्री दोनों को, यहाँ तक कि एक लड़की जिससे वह सिर्फ एक ही बार मिला था और जो पहाड़ों के दूसरी ओर रहती थी उसे भी, वो गीत भेज दिया |


और एक-दो दिन बाद एक संदेशवाहक उस लड़की की ओर से एक पत्र लेकर आया | पत्र में उसने लिखा था, "मैं तुम्हें यकीन दिलाना चाहती हूँ, कि जो प्रेमगीत तुमने मेरे लिए लिखा है, उसने मेरे दिल को छू लिया है | आओ, और मेरे माता पिता से मिलो, और उसके बाद हमें अपनी सगाई की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए |"


कवि ने जवाबी पत्र लिखा, और उसमे उसने कहा, "मेरे दोस्त, यह एक कविह्रदय से निकला सिर्फ एक प्रेमगीत है, जो हर पुरुष द्वारा हर स्त्री के लिए गाया गया है |"


तब उस लड़की ने कवि को दुबारा पत्र लिखा और कहा, "झूठे और मक्कार ! शब्दों का पाखण्ड करने वाले ! आज से क़यामत के दिन तक मैं सभी कवियों से नफरत करती रहूंगी |"


बुधवार, 16 मार्च 2011

उकाब और अबाबील





एक अबाबील और एक उकाब (गरुड़) पहाड़ी चोटी पर मिले | अबाबील ने कहा, "आपका दिन शुभ हो, श्रीमान !" और उकाब ने उसकी ओर हिकारत भरी नजरों से देखा और धीमे से कहा, "दिन शुभ हो |"


और अबाबील ने कहा, "मुझे आशा है कि आपकी जिंदगी में सब ठीक चल रहा है |"


"हाँ" उकाब ने जवाब दिया "हमारे साथ सब सही चल रहा है | लेकिन क्या तुम जानते नहीं कि हम पक्षियों के बादशाह हैं, और तुम्हें तक तक हमसे मुखातिब नहीं होना चाहिए जब तक हम खुद तुम्हें इजाज़त न दें ?"


अबाबील ने कहा, "मेरे ख़याल से हम सब एक ही परिवार से हैं |"


उकाब ने नफरत से उसे देखा और कहा, "ये तुमसे किसने कहा कि हम और तुम एक ही परिवार से हैं ?"


तभी अबाबील ने जवाब दिया, "और मैं आपको बता दूँ, कि मैं आपसे कहीं अधिक ऊंचा उड़ सकता हूँ, मैं गा सकता हूँ तथा दुनिया के बाकी प्राणियों को ख़ुशी दे सकता हूँ | और आप न तो सुकून देते हैं , न ख़ुशी |"


उकाब को गुस्सा आ गया, और उसने कहा, "सुकून और ख़ुशी ! क्षुद्र अहंकारी जीव | अपनी चोंच के एक हमले से मैं तुम्हारा नामोनिशान मिटा सकता हूँ | आकार में मेरे पंजों के बराबर भी नहीं हो तुम |"


यह सुनते ही अबाबील उड़ कर उकाब की पीठ पर बैठ गया | और उसके पंख नोचने लगा | उकाब अब परेशान हो गया था, और तेज़ी से ऊंची उड़ान भरने लगा ताकि अबाबील से छुटकारा पाया जाए | लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली | आख़िरकार, हारकर वह उसी पहाड़ी चोटी की चट्टान पर गिरकर अपने भाग्य को कोसने लगा | 'क्षुद्र जीव' अभी भी उसकी पीठ पर सवार था |


उसी समय वहाँ से एक छोटा कछुआ गुजरा, ये दृश्य देखकर वह जोर से हँसा, और इतनी जोर से हँसा कि दोहरा होकर पीठ के बल गिरते गिरते बचा |


उकाब ने कछुए की तरफ नीचे देखा और कहा, "जमीन पर रेंग के चलने वाले, तुम्हें किस बात पर इतनी हँसी आ रही है ?"


और तब कछुए ने जवाब दिया, "मैं देख रहा हूँ कि तुम घोड़े बन गए हो , और वो छोटी चिड़िया तुम पर सवारी कर रही है, छोटी चिड़िया तुम दोनों में बेहतर साबित हो रही है |"


ये सुनकर उकाब ने उससे कहा, "जाओ, जाओ | अपना काम करो | ये मेरे भाई अबाबील और मेरे बीच की बात है | ये हमारे परिवार का मामला है |"


[रोब पाल्मर की बाल्ड ईगल गूगल सर्च से ली गई है]

गुरुवार, 10 मार्च 2011

लिबास






एक बार सुन्दरता और कुरूपता समंदर के किनारे मिले, उन्होंने एक दूसरे से कहा , "चलो , थोड़ा समंदर में नहा लें |"


उन्होंने अपने कपडे उतारकर एक जगह रखे और पानी में तैरने लगे | और कुछ देर बाद, कुरूपता तट पर वापस आकर और खुद को सुन्दरता की पोशाक में संवारकर और चुपके से वहाँ से चला गया |


और कुछ समय बाद सुन्दरता भी समंदर से बाहर आई, अपनी पोशाक उसे वहाँ पर नहीं मिली | उसे अपनी अवस्था पर काफी शर्म आ रही थी , इसलिए उसने कुरूपता की ही पोशाक पहन ली | और वह अपने रास्ते चली गयी |


और उस दिन के बाद से लोग उन दोनों में , एक को दूसरा समझने की ग़लती करते हैं |


फिर भी कुछ है जिन्होंने सुन्दरता के चेहरे को ध्यान से देखा है और उसके कपड़ों के बावजूद वे उसे पहचान लेते हैं | और कुछ हैं जिन्होंने कुरूपता के चेहरे को जाना है, और उसके कपडे भी उनकी आँखों में धूल नहीं झोंक पाते |



सोमवार, 7 मार्च 2011

यायावर





चौराहे पर वह मुझे मिला , चोगा पहने, छड़ी का सहारा लिए | उसके चेहरे पर दर्द साफ़ नुमांया हो रहा था | हमने एक दूसरे का अभिवादन किया, और तब मैंने उससे कहा, "कृपया मेरे घर आकर कुछ दिन मेरे मेहमान बनें |"


उसने स्वीकार किया |


मेरी पत्नी और बच्चे, घर की देहरी पर ही उससे मिले | उन्हें देखकर वह मुस्कुराया, मेरे घरवालों को भी उसका आना भला लगा |


उसके बाद हम लकड़ी के एक तख्ते पर बैठ गए | उसकी शांति और रहस्यमयता की वजह से हमें उसके साथ बैठकर काफी सुकून महसूस हुआ |


रात्रिभोज के बाद हम अलाव के पास बैठ गए, और मैंने उससे उसकी पिछली यात्राओं के बारे में पूछा |


उस रात और उसके अगले दिन उसने हमें कई किस्से सुनाये, लेकिन जो कहानियाँ मैं अभी लिख रहा हूँ वे उसके कडुवे अनुभव के किस्से हैं , हालांकि वो खुद बहुत दयालु था | ये किस्से उसके रास्तों की गर्द और धैर्य के किस्से हैं |


और तीन दिन बाद वो चला गया तो उसका जाना हमें किसी मेहमान का जाना नहीं लगा, बल्कि किसी अपने का ही थोड़ी देर के लिए बगीचे में सैर के लिए जाना जैसा लगा, जो अभी तक वापस नहीं आया है |


पाठकों के नाम एक ख़त

हिंदी में बहुत कुछ लिखा गया है, लिखा जा रहा है | मजेदार बात ये है कि अच्छा भी है | फिर भी, विश्व साहित्य की बहुत सी कृतियों को हिंदी में अनुवाद नहीं किया गया है | अनुवाद की मेरी कोशिश इस चिट्ठे पर जारी रहेंगी | अभी कुछ फुटकर आसान अनुवाद किये जायेंगे | आप लोगों के प्यार और ख़ुलूस को मद्देनज़र रखकर ही सिलसिला आगे बढ़ाया जाएगा | विश्व साहित्य के कुछ दुर्लभ नगीनों को इसमें जगह दी जायेगी | मुझे उम्मीद है मेरी कोशिशों को आप पाठकों का भरपूर प्यार मिलेगा | 

-- आपका ,
नीरज बसलियाल