मंगलवार, 22 मार्च 2011

मेले में





छोटे कस्बे की बेहद खूबसूरत एक लड़की, मेला देखने के लिए आई | उसके गालों पर गुलाब की लालिमा थी , सूर्यास्त मानों उसके बालों में होता हो, और भोर उसके होंठों में मुस्कुराती हो |


इक खूबसूरत अजनबी के निगाह में आते ही सारे नवयुवक तरह तरह के बहानों से उससे मिलने आने लगे | कोई उसके साथ नाचना चाहता था, कोई दूसरा उसके सम्मान में केक काटना चाहता था | सभी उसके कुमुदनी जैसे गालों को चूमना चाहते थे, आखिर ऐसा कौन होगा जो ये नहीं चाहेगा |


बेचारी लड़की को युवकों का व्यवहार देखकर सदमा सा लगा, और उसे सारे लड़के बुरे से मालूम हुए | उसने उन्हें डांटा, कुछेक को थप्पड़ भी मारा | उसके बाद वह वहाँ से भाग गयी |


और घर आते हुए, उस शाम रोते हुए उसने अपने दिल में कहा, "घृणा होती है मुझे, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग हैं | बरदाश्त की हर हद से बाहर |"


साल गुजरा , इस दौरान उस खूबसूरत लड़की ने बहुत से मेलों और उन युवकों के बारे में सोचा | एक दिन वह फिर से उस मेले को देखने गयी | आज भी वह उतनी ही खूबसूरत लग रही थी, जैसे गुलाब की लालिमा उसके गालों पर, सूर्यास्त उसके बालों पर होता हो , और जैसे भोर उसके होंठों पर मुस्कुराती हो |


लेकिन इस बार लड़कों ने उसे देखने के बाद सर झुका लिया , देखकर अनदेखा करने लगे | और पूरा दिन उस लड़की ने अपने को काफी अनचाहा और अकेला महसूस किया |


सांझ के झुटपुटे में घर की ओर जाने वाले रास्ते पर वह लड़की अपने दिल में बहुत रोई, "मुझे घृणा होती है, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग है | बर्दाश्त की हर हद से बाहर |"



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