बुधवार, 20 अप्रैल 2011

शांति और युद्ध

तीन कुत्ते धूप में लेटे हुए थे और बातचीत कर रहे थे | पहले कुत्ते ने आलस से कहा, "यह वाकई एक शानदार बात है कि हम एक कुत्ता-राज्य में जी रहे हैं | विचार करो कितनी आसानी से हम समुद्र के अन्दर सफ़र करते है, पृथ्वी के ऊपर और यहाँ तक कि आसमान में भी | और एक पल के लिए उन आविष्कारों का ध्यान करो जिन्होंने कुत्तों की जिंदगी आरामदेह बना दी, यहाँ तक कि हमारी आँखों और कानों और नाकों को भी आराम पहुँचाया |"

और दूसरे कुत्ते ने कहा, "ललित कलाओं के प्रति हमारा लगाव ज्यादा है | हम हमारे पूर्वजों से ज्यादा लय और ताल से चाँद को देखकर भौंकते हैं | और जब हम पानी में अपने आप को ताकते हैं तो देखते हैं कि हमारी शारीरिक बनावट, नाक-नक्श बीते दिनों से कहीं ज्यादा निर्मल व साफ़ हैं |"

तब तीसरे कुत्ते ने कहा, "लेकिन जो चीज मुझे सबसे ज्यादा दिलचस्प लगती है और मेरे दिमाग को घुमा देती है वो है कुत्ता-राज्यों के बीच मौजूद शांत समझदारी |"

उसी समय उन्होंने देखा कि कुत्ता पकड़ने वाला उनकी तरफ आ रहा है |

और तीनों कुत्ते तेजी से उठे और गली की ओर खिसक लिए, और जब वे दौड़ने लगे तीसरे कुत्ते ने कहा, "भगवान् की खातिर, सब अपनी जान बचाने के लिए भागो | सभ्यता हमारे पीछे है |"


मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

तीन उपहार

 एक बार बशर के एक शहर में एक दयालु राजकुमार रहा करता था जो अपनी पूरी प्रजा द्वारा बेहद पसंद और सम्मानित किया जाता था |

लेकिन वहां एक निहायत गरीब आदमी था जो राजकुमार के खिलाफ बेहद कड़वा था, और वह लगातार उनका अपमान करने के लिए अपनी घातक जुबान चलाता रहता था |

राजकुमार ये सब जानता था, फिर भी वह धैर्यवान था |

लेकिन आख़िरकार उसने उसके बारे मैं सोचा, और एक सर्द रात को राजकुमार का नौकर उसकी चौखट पे आया, आटे की एक बोरी, साबुन का एक झोला, और चीनी का एक डिब्बा लेकर |
और नौकर ने कहा, "राजकुमार ने तीन उपहार एक यादगार निशानी के तौर पर आपको भेजे हैं |"

आदमी काफी उत्साहित हुआ, उसे लगा कि ये उपहार राजकुमार की तरफ से उसका सम्मान है | और अपने गर्व में वह बिशप के पास गया और उसे राजकुमार ने जो किया , बता आया, और कहने लगा , "क्या तुम देख नहीं रहे कि राजकुमार मेरी सद्भावनाओं की कितनी आकांक्षा रखता है ?"

लेकिन बिशप ने कहा, "वह, राजकुमार कितने बुद्धिमान हैं, और तुम कितने नासमझ | उन्होंने इशारों में सब कुछ कह दिया है | आटा तुम्हारे भूखे पेट के लिए था; साबुन तुम्हारी गन्दगी को हटाने के लिए था; और चीनी तुम्हारे कडवी जुबान को मीठा करने के लिए |"

उस दिन के बाद से वह आदमी खुद अपने आप से शर्मिंदा हो गया | राजकुमार के लिए उसकी नफरत पहले से भी कहीं ज्यादा बढ़ गयी, और उससे भी ज्यादा वह उस बिशप से नफरत करने लगा जिसने राजकुमार के उपहारों का रहस्य उस पर उजागर किया |

लेकिन उसके बाद वह चुप रहा |



सोमवार, 18 अप्रैल 2011

रेत पर


एक आदमी ने दूसरे से कहा, "बहुत समय पहले, समंदर के ज्वार-भाटा की पहुँच से बहुत ऊपर, अपनी छड़ी की नोंक से मैंने रेत पर एक पंक्ति लिखी थी, और लोग आज भी उसे पढने के लिए रुकते हैं, और वे बहुत सावधान रहते हैं कि कहीं कोई इसे मिटा न दें |"

और दूसरे आदमी ने कहा, "मैंने भी एक बार रेत पर एक पंक्ति लिखी थी, लेकिन ये काफी नीचे ज्वार-भाटे की पहुँच में था, और विशाल समुद्र की लहरों ने इसे बहा दिया | लेकिन छोडो, ये बताओ, तुमने क्या लिखा था ?"

और तब पहले आदमी ने जवाब देते हुए कहा, "मैंने ये लिखा: 'मैं वो हूँ जो है |' लेकिन तुमने क्या लिखा ?"

और दूसरे आदमी ने कहा, "मैंने लिखा: मैं इस महान समंदर की महज़ एक बूँद हूँ |"


राजा

सादिक राज्य के लोगों ने विद्रोह की आवाज उठाते हुए अपने राजा का महल घेर लिया | और वह अपने एक हाथ में अपना ताज और दूसरे हाथ में अपना राजदंड लेकर महल की सीढ़ियों से नीचे उतरा | उसकी प्रभावी मौजूदगी ने भीड़ को ख़ामोश कर दिया, और वह उनके सामने खड़ा हुआ और कहा, "साथियों, जो अब मेरी प्रजा नहीं रही, मैं अपना ताज और राजदंड आपको सौंपता हूँ | मैं अब आप लोगों में से एक बनकर रहूँगा | मैं भी एक आम आदमी हूँ, लेकिन एक आम आदमी की तरह मैं तुम्हारे साथ मिलकर काम करूँगा ताकि हमारी ये जमीन शायद और अच्छी बन जाए | राजा की कोई जरुरत नहीं है | आओ खेतों और अंगूर के बागों की तरफ चलें और मिलजुलकर काम करें | बस आप लोग मुझे बताएं कि किस खेत या किस बाग़ में मुझे जाना चाहिए | अब आप सब राजा हैं |"

और सारे लोग अचंभित हो गए, और मौन छा गया, क्योंकि वो राजा जिसे वे अपने असंतोष के लिए जिम्मेदार मानते थे अपना ताज और अपना राजदंड उन्हें सौंप रहा है और एक आम आदमी बन गया है |

तब हर एक अपने रास्ते चला गया, राजा किसी के साथ एक खेत की ओर चला गया |

लेकिन सादिक का राज्य बिना राजा के अच्छी तरक्की नहीं कर पाया, और असंतोष के बादल फिर से उनकी जमीन के ऊपर मंडराने लगे | लोग बाजारों में अक्सर ये कहकर अपना दुखड़ा रोया करते कि उनके पास एक राजा है राज्य करने के लिए | और बड़े बूढ़े और जवान सबने एक सुर में कहा , "हम अपना राजा बनायेंगे |"

और वे राजा को ढूँढने लगे और उसे एक खेत में मेहनत करते हुए पाया, और उन्होंने उसे उसकी गद्दी पर बिठाया, उसका ताज और उसका राजदंड उसे सौंप दिया | और उन्होंने कहा, "अब शक्ति और न्याय के साथ इस राज्य को चलाओ |"

और उसने कहा, "मैं वास्तव में पूरी शक्ति के साथ राज्य करूँगा, और स्वर्ग और दुनिया के भगवान् मुझे आशीर्वाद दें ताकि मैं न्याय के साथ राज्य कर सकूँ |"

अब, उसके सामने कुछ आदमी और औरतें आयीं और उन्होंने उससे एक व्यापारी की शिकायत की जिसने उनसे दुर्व्यवहार किया, और जिसके लिए वे महज एक ग़ुलाम थे |

और राजा ने तत्काल उस व्यापारी को अपने सामने बुलाया और कहा, "भगवान् के तराजू में एक आदमी की जिंदगी उतनी ही वजनदार है जितनी कि दूसरे की | और क्योंकि तुम उनकी जिंदगी का वजन नहीं जानते जो लोग तुम्हारे खेतों या तुम्हारे अंगूर के बागों में काम करते हैं, तुम इस राज्य से निकाले जाते हो, और तुम्हे हमेशा हमेशा के लिए ये राज्य छोड़ना होगा |"

अगले ही दिन और लोग राजा के पास आये और उसे पहाड़ों के दूसरी ओर रहने वाली एक जमींदार की निर्दयता के बारे में बताया, और कैसे उसने उन्हें उनके दुर्दिनों में ला पटका | उसी समय जमींदार को दरबार में लाया गया, और राजा ने उसे भी देशनिकाला दे दिया, कहा, "वो लोग जो हमारे खेतों को जोतते हैं और हमारे अंगूर के बागों की रक्षा करते हैं हम जोकि सिर्फ उनका अन्न खाते हैं, और उनके शराबखाने की वाइन पीते हैं से कहीं ज्यादा कुलीन हैं | और क्योंकि तुम यह नहीं जानते हो, तुम्हें यह भूमि छोडनी होगी और इस राज्य से कहीं दूर रहना होगा |"

तब कुछ आदमी और औरतें आयीं जिन्होंने कहा कि बिशप ने उनसे पत्थर उठवाए और उन्होंने बड़े गिरजाघर के लिए पत्थर ढोये, तब भी उसने उन्हें कुछ नहीं दिया, हालांकि वे जानते थे कि बिशप का संदूक सोने चांदी से भरा हुआ है, जिस समय वे खुद भूख से खाली थे |

और तब राजा ने बिशप को पेश होने को कहा, और जब बिशप आया, तो राजा ने उससे कहा, "जो सलीब तुम अपने सीने पे पहनते हो इसका मतलब दूसरों को जिंदगी देना होना चाहिए | लेकिन तुम उनकी जिंदगी ले रहे हो और उन्हें कुछ नहीं दे रहे हो | इसलिए तुम्हें इस राज्य को छोड़ना होगा और कभी वापस नहीं आना |"


इस तरह से हर दिन आदमी और औरतों का झुण्ड राजा के पास अपनी समस्या बताने आता था | और हर दिन कुछ अत्याचारियों को उस भूमि से बेदखल किया जाता |

और सादिक के लोग आश्चर्यचकित हुए, और उन्हें दिल में बेहद ख़ुशी हुई |

और एक दिन बड़े बूढ़े और जवान आये और उन्होंने राजा का महल घेर लिया और उसे पुकारने लगे | और वह नीचे उतरा हाथ में ताज और दूसरे हाथ में अपना राजदंड लेकर |

और वह उनसे बोला, अब, आप लोग मुझसे क्या चाहते हैं ? रुको, मैं तुम्हें वह वापस कर दूँ, जो तुमने मुझे सौंपा था |"

लेकिन वे लोग चिल्लाये, "नहीं, नहीं, आप ही हमारे यथोचित राजा हैं | आपने इस धरती को साँपों से खाली किया, और आपने ही सब भेड़ियों को खत्म किया | और हम यहाँ पर आपका स्वागत करते हैं तथा गीतों के जरिये आपका धन्यवाद करना चाहते हैं | आपका राजदंड हमेशा यश पाए, और आपका ताज़ हमेशा बना रहे |"

तब राजा ने कहा, "नहीं, मैं नहीं, आप लोग खुद ही राजा हैं | जब आप लोगों ने मुझे कमजोर और बुरा शासक समझा, तब आप लोग खुद ही कमजोर थे और बुरा शासन कर रहे थे | और अब क्योंकि तुम ऐसा चाह रहे हो इसलिए राज्य तरक्की कर रहा है | मैं सिर्फ आप लोगों के मन का एक विचार हूँ, और मेरा अस्तित्व आपके कर्म में निहित है | शासक जैसी कोई चीज नहीं होती | केवल शासित ही मौजूद होते हैं अपने आप पर शासन करने के लिए |" 

और राजा अपने ताज और अपने राजदंड के साथ दुबारा महल के अन्दर चला गया | और सभी बड़े बूढ़े और जवान अपने अपने रास्ते चले गए और वे सभी संतुष्ट थे |

और हर एक ने अपने आप को राजा महसूस किया जिसके एक हाथ में उसका ताज़ है और दूसरे हाथ में राजदंड |


शनिवार, 16 अप्रैल 2011

शरीर और आत्मा

एक आदमी और एक औरत एक खिड़की के पास बैठे थे जो कि बसंत की ओर खुलती थी | वे एक दूसरे के नजदीक बैठे थे, और औरत कहती है, "मैं तुमसे प्यार करती हूँ | तुम खूबसूरत हो, और पैसे वाले हो, और तुम हमेशा अच्छे कपडे पहनते हो |"

और आदमी ने कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ | तुम एक खूबसूरत ख़याल हो, ऐसी चीज़ जिसे हाथों में समेटा नहीं जा सकता, और मेरे सपनों का गीत हो |"

लेकिन औरत गुस्से में उससे दूर हटी, और उसने कहा, "जनाब, आप अभी यहाँ से चले जाइए | मैं कोई ख़याल नहीं हूँ, और मैं कोई तुम्हारे सपनों में गुजरने वाली चीज़ नहीं हूँ | मैं एक औरत हूँ | और मैं चाहूंगी कि आप मेरी कामना करें, एक पत्नी, और आपके अजन्मे बच्चों की माँ के रूप में |"

और वे जुदा हो गए |
और आदमी अपने दिल में कह रहा था, "देखा मेरा एक और सपना भी अब धुंध में बदल गया |"

और औरत कह रही थी, "अच्छा, क्या आदमी है जो मुझे धुंध और सपने में बदलता है |"



सोमवार, 11 अप्रैल 2011

नबी और बच्चा

एक बार एक दिन शरिया नबी एक बगीचे में एक बच्चे से मिला | बच्चा दौड़ता हुआ उनके पास आया और बोला, "आपका दिन शुभ हो, श्रीमान ," और तब नबी ने कहा, "आपका भी दिन शुभ हो |" और एक पल बाद, "आप अकेले लग रहे हैं |"

तब बच्चे ने हंसी और ख़ुशी से कहा, "अपनी दाई से छुपने में काफी समय लगता है | उसे लगता है कि मैं उस बाड़े के पीछे हूँ; लेकिन मैं तो आपके सामने हूँ न ?" तब उसने नबी के चेहरे पर देखा और कहा, "आप भी तो अकेले हैं | आप अपनी दाई से कैसे छुपे ?"

नबी ने जवाब देते हुए कहा, "वो दूसरी बात है | सच ये है कि मैं उससे देर तक छुपा नहीं रह पाता | पर अब, जब मैं इस बगीचे में आया था,  तो वह मुझे बाड़े के पीछे ढूंढ़ रही थी |"

बच्चे ने ख़ुशी से तालियाँ बजायी, और चिल्लाया, "तो आप भी मेरे जैसे ही हो ! छुपना अच्छा लग रहा है न ?" और तब उसने पूछा, "आप कौन हो ?"

और तब आदमी ने जवाब दिया, "लोग मुझे शरिया नबी कहते हैं | और आप बताओ, आप कौन हो ?"

"मैं तो सिर्फ मैं हूँ, " बच्चे ने कहा, "और मेरी दाई मुझे ढूंढ़ रही है और उसे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ |"

तब नबी ने आसमान की ओर देखते हुए कहा, "मैं भी अपनी दाई से भाग आया हूँ, लेकिन मुझे पता है कि वह मुझे ढूंढ़ लेगी |"

और तब बच्चे ने कहा, "मुझे पता है कि मुझे भी मेरी दाई ढूंढ़ लेगी |"

उसी समय बच्चे का नाम लेती एक स्त्री की आवाज सुनाई दी, "देखो," बच्चे ने कहा, "मैंने कहा था न कि वह मुझे ढूंढ़ लेगी |"

उसी समय एक दूसरी आवाज सुनाई दी, "तुम कहाँ हो , शरिया ?"

और नबी ने कहा, "देखो मेरे बच्चे, मुझे भी उन्होंने ढूंढ़ लिया है |"

और ऊपर की ओर अपना चेहरा उठाकर, शरिया ने जवाब दिया, "मैं यहाँ हूँ |"