सोमवार, 18 अप्रैल 2011

रेत पर


एक आदमी ने दूसरे से कहा, "बहुत समय पहले, समंदर के ज्वार-भाटा की पहुँच से बहुत ऊपर, अपनी छड़ी की नोंक से मैंने रेत पर एक पंक्ति लिखी थी, और लोग आज भी उसे पढने के लिए रुकते हैं, और वे बहुत सावधान रहते हैं कि कहीं कोई इसे मिटा न दें |"

और दूसरे आदमी ने कहा, "मैंने भी एक बार रेत पर एक पंक्ति लिखी थी, लेकिन ये काफी नीचे ज्वार-भाटे की पहुँच में था, और विशाल समुद्र की लहरों ने इसे बहा दिया | लेकिन छोडो, ये बताओ, तुमने क्या लिखा था ?"

और तब पहले आदमी ने जवाब देते हुए कहा, "मैंने ये लिखा: 'मैं वो हूँ जो है |' लेकिन तुमने क्या लिखा ?"

और दूसरे आदमी ने कहा, "मैंने लिखा: मैं इस महान समंदर की महज़ एक बूँद हूँ |"


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