रविवार, 10 जुलाई 2011

मूर्ति

एक बार पहाड़ियों के बीच में एक आदमी रहता था जिसके पास एक पुराने कलाकार द्वारा गढ़ी गयी एक मूर्ति थी | यह उसके दरवाजे पर औंधे मुंह पड़ी रहती थी, और वह इस पर कुछ ध्यान नहीं देता था |

एक दिन उसके घर के पास से एक शहरी, बुद्धिमान आदमी गुज़रा, और उस मूर्ति को देखने के बाद उसने उसके मालिक से पूछा कि क्या वह इस मूर्ति को बेचना चाहेगा |

मूर्ति का मालिक हँसा, और उसने कहा, "और दुआ करो कि कौन उस गंदे और भौंडे पत्थर को खरीदना चाहेगा ?"

और तब शहरी आदमी ने कहा, "मैं तुम्हें इसके लिए एक चांदी का सिक्का दूँगा |"

तब वह आदमी आश्चर्यचकित हुआ, और बेहद खुश हुआ

हाथी की पीठ पर, वह मूर्ति शहर में स्थानांतरित कर दी गयी | और कई तिथियों के बाद वह पहाड़ी आदमी शहर घूमने के लिए आया, और जब वह सडकों से गुजर रहा था, उसने एक दूकान के बाहर भीड़ देखी, और एक आदमी ऊंची आवाज में चिल्ला रहा था, "आओ , देखो दुनिया की सबसे
खूबसूरत और सबसे आश्चर्यजनक मूर्ति को देखो | मात्र दो चांदी के सिक्कों में एक महान कलाकार के महान कार्य को निहारो |"

और तब उस पहाड़ी आदमी ने दो चांदी के सिक्के अदा किये, और दूकान में उस मूर्ति को देखने के लिए घुसा जिसे उसने खुद एक चांदी के सिक्के के लिए बेच दिया था |


शनिवार, 9 जुलाई 2011

दो मसीहा

एक शाम दो देवदूत शहर के द्वार पर मिले, उन्होंने एक दूसरे का अभिवादन किया, और बातें करने लगे |

एक देवदूत ने कहा, "आजकल क्या कर रहे हैं आप, और किस तरह का काम आपको दिया गया है ?"

और दूसरे ने जवाब दिया, "मुझे एक पतित इंसान, जो नीचे घाटी में रहता है, बहुत ही पापी और नीच है, का अभिभावक नियुक्त किया गया है | और मैं दावा करता हूँ कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण काम है, और मैं बहुत मेहनत करता हूँ |"


तब पहले देवदूत ने कहा,  "यह एक आसान बात है | मैं कई पापियों को जानता हूँ , और उनका अभिभावक रह चुका हूँ | लेकिन इस बार मुझे एक अच्छे संत का अभिभावक नियुक्त किया है, जो वहां उस झोपड़ी में रहता है | और मैं यकीन दिलाता हूँ यह बेहद मुश्किल काम है , और बेहद नाजुक |"


तब अगले देवदूत ने कहा, "यह सिर्फ झूठ है | एक संत की देखभाल करना एक पापी की देखभाल करने से ज्यादा कठिन कैसे हो सकता है ?"


और तब दूसरे ने जवाब दिया, "क्या बदतमीजी है ? मुझे झूठा कहने की तुम्हारी ? मैंने सिर्फ सत्य कहा है , मेरे ख्याल से ये तुम हो जो झूठे हो !"


तब दोनों देवदूत आपस में भिड़ गए और झगड़ने लगे, पहले बातों से और तब अपने पंखों और मुक्कों से |


जब वे लड़ रहे थे, एक प्रधान देवदूत आया | और उसने उन्हें रोका, और पूछा, "क्यों लड़ रहे हो? और ये सब क्या हो रहा है ? क्या तुम नहीं जानते कि लड़ना देवदूतों के लिए कितने शर्म की बात है | शहर के द्वार पर ? मुझे बताओ कि तुम्हारी असहमति क्या है ?"


तब दोनों देवदूत एकसाथ बोलने लगे, हर कोई उसे दिए गए काम को कठिन बता रहा था , और स्वयं को बड़ी मान्यता का हकदार बता रहा था |



प्रधान देवदूत ने अपना सर हिलाया और विचार किया |
तब उसने कहा, "दोस्तों, मैं अभी यह कहने में असमर्थ हूँ कि तुम दोनों में से कौन ज्यादा सम्मान और ईनाम का हकदार है | लेकिन क्योंकि निर्णय का अधिकार मुझे मिला है, इसलिए शांति बनाये रखने के लिए और अच्छे संरक्षण के लिए, मैं तुम दोनों को एक-दूसरे का पेशा दे देता हूँ, क्योंकि तुम दोनों को लगता है कि दूसरे का काम ज्यादा आसान है | अब जाओ और अपने काम में मन लगाओ |"


देवदूत आज्ञा के अनुसार अपने अपने रास्ते जाने लगे | लेकिन दोनों पीछे मुड़कर प्रधान देवदूत को बेहद गुस्से से देख रहे थे | और मन ही मन दोनों कह रहे थे, "ओह ये प्रधान देवदूत ! जिंदगी को कठिन बनाते रहते हैं, और हम देवदूतों के लिए तो और भी मुश्किल !"


लेकिन प्रधान देवदूत वहां पर खड़ा रहा, और एक बार फिर विचार करने लगा | और तब उसने मन ही मन कहा, "वास्तव में, इंसान को जागरूक बनना होगा और अपने अभिभावक देवदूत का अभिभावक बनना होगा |"



सोमवार, 9 मई 2011

नर्तकी

एक बार बिर्काशा के राजा के दरबार में एक नर्तकी अपने वादक के साथ आई | और वह दरबार में शामिल कर ली गयी, और उसने राजकुमार के सामने वीणा और बांसुरी और जिट्रा के संगीत पर नृत्य किया |

उसने अग्नि की लपटों का नृत्य किया, और तलवारों और भालों का नृत्य किया; सितारों का नृत्य, और आसमानों का नृत्य भी उसने किया. और फिर उसने हवा में लचकते हुए फूलों का नृत्य किया |

इसके बाद वह राजा के सिंहासन के सामने खड़ी हुई और शरीर को झुकाकर उसे सलाम किया | राजा ने उसे नजदीक आने को कहा, और उससे कहा, "हे सुंदरी, दया और ख़ुशी देने वाली कन्या, यह कला तुमने कहाँ सीखी ? और कैसे संभव हुआ कि अपनी लय और अपनी ताल में समाविष्ट हर तत्व को तुमने नियंत्रित किया हुआ है |" 

और तब नर्तकी ने पुन: उसे झुककर सलाम किया, और कहा, "हे शक्तिशाली और दयालु भगवन | मैं आपके सवालों का जवाब नहीं जानती | मैं सिर्फ यही जानती हूँ कि : एक विचारक की आत्मा उसके मस्तिष्क में निवास करती है, एक कवि की उसके ह्रदय में; एक गायक की आत्मा उसके गले में विचरण करती है, लेकिन एक नर्तक की आत्मा उसके पूरे शरीर से जुडी होती है |"

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

शांति और युद्ध

तीन कुत्ते धूप में लेटे हुए थे और बातचीत कर रहे थे | पहले कुत्ते ने आलस से कहा, "यह वाकई एक शानदार बात है कि हम एक कुत्ता-राज्य में जी रहे हैं | विचार करो कितनी आसानी से हम समुद्र के अन्दर सफ़र करते है, पृथ्वी के ऊपर और यहाँ तक कि आसमान में भी | और एक पल के लिए उन आविष्कारों का ध्यान करो जिन्होंने कुत्तों की जिंदगी आरामदेह बना दी, यहाँ तक कि हमारी आँखों और कानों और नाकों को भी आराम पहुँचाया |"

और दूसरे कुत्ते ने कहा, "ललित कलाओं के प्रति हमारा लगाव ज्यादा है | हम हमारे पूर्वजों से ज्यादा लय और ताल से चाँद को देखकर भौंकते हैं | और जब हम पानी में अपने आप को ताकते हैं तो देखते हैं कि हमारी शारीरिक बनावट, नाक-नक्श बीते दिनों से कहीं ज्यादा निर्मल व साफ़ हैं |"

तब तीसरे कुत्ते ने कहा, "लेकिन जो चीज मुझे सबसे ज्यादा दिलचस्प लगती है और मेरे दिमाग को घुमा देती है वो है कुत्ता-राज्यों के बीच मौजूद शांत समझदारी |"

उसी समय उन्होंने देखा कि कुत्ता पकड़ने वाला उनकी तरफ आ रहा है |

और तीनों कुत्ते तेजी से उठे और गली की ओर खिसक लिए, और जब वे दौड़ने लगे तीसरे कुत्ते ने कहा, "भगवान् की खातिर, सब अपनी जान बचाने के लिए भागो | सभ्यता हमारे पीछे है |"


मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

तीन उपहार

 एक बार बशर के एक शहर में एक दयालु राजकुमार रहा करता था जो अपनी पूरी प्रजा द्वारा बेहद पसंद और सम्मानित किया जाता था |

लेकिन वहां एक निहायत गरीब आदमी था जो राजकुमार के खिलाफ बेहद कड़वा था, और वह लगातार उनका अपमान करने के लिए अपनी घातक जुबान चलाता रहता था |

राजकुमार ये सब जानता था, फिर भी वह धैर्यवान था |

लेकिन आख़िरकार उसने उसके बारे मैं सोचा, और एक सर्द रात को राजकुमार का नौकर उसकी चौखट पे आया, आटे की एक बोरी, साबुन का एक झोला, और चीनी का एक डिब्बा लेकर |
और नौकर ने कहा, "राजकुमार ने तीन उपहार एक यादगार निशानी के तौर पर आपको भेजे हैं |"

आदमी काफी उत्साहित हुआ, उसे लगा कि ये उपहार राजकुमार की तरफ से उसका सम्मान है | और अपने गर्व में वह बिशप के पास गया और उसे राजकुमार ने जो किया , बता आया, और कहने लगा , "क्या तुम देख नहीं रहे कि राजकुमार मेरी सद्भावनाओं की कितनी आकांक्षा रखता है ?"

लेकिन बिशप ने कहा, "वह, राजकुमार कितने बुद्धिमान हैं, और तुम कितने नासमझ | उन्होंने इशारों में सब कुछ कह दिया है | आटा तुम्हारे भूखे पेट के लिए था; साबुन तुम्हारी गन्दगी को हटाने के लिए था; और चीनी तुम्हारे कडवी जुबान को मीठा करने के लिए |"

उस दिन के बाद से वह आदमी खुद अपने आप से शर्मिंदा हो गया | राजकुमार के लिए उसकी नफरत पहले से भी कहीं ज्यादा बढ़ गयी, और उससे भी ज्यादा वह उस बिशप से नफरत करने लगा जिसने राजकुमार के उपहारों का रहस्य उस पर उजागर किया |

लेकिन उसके बाद वह चुप रहा |



सोमवार, 18 अप्रैल 2011

रेत पर


एक आदमी ने दूसरे से कहा, "बहुत समय पहले, समंदर के ज्वार-भाटा की पहुँच से बहुत ऊपर, अपनी छड़ी की नोंक से मैंने रेत पर एक पंक्ति लिखी थी, और लोग आज भी उसे पढने के लिए रुकते हैं, और वे बहुत सावधान रहते हैं कि कहीं कोई इसे मिटा न दें |"

और दूसरे आदमी ने कहा, "मैंने भी एक बार रेत पर एक पंक्ति लिखी थी, लेकिन ये काफी नीचे ज्वार-भाटे की पहुँच में था, और विशाल समुद्र की लहरों ने इसे बहा दिया | लेकिन छोडो, ये बताओ, तुमने क्या लिखा था ?"

और तब पहले आदमी ने जवाब देते हुए कहा, "मैंने ये लिखा: 'मैं वो हूँ जो है |' लेकिन तुमने क्या लिखा ?"

और दूसरे आदमी ने कहा, "मैंने लिखा: मैं इस महान समंदर की महज़ एक बूँद हूँ |"


राजा

सादिक राज्य के लोगों ने विद्रोह की आवाज उठाते हुए अपने राजा का महल घेर लिया | और वह अपने एक हाथ में अपना ताज और दूसरे हाथ में अपना राजदंड लेकर महल की सीढ़ियों से नीचे उतरा | उसकी प्रभावी मौजूदगी ने भीड़ को ख़ामोश कर दिया, और वह उनके सामने खड़ा हुआ और कहा, "साथियों, जो अब मेरी प्रजा नहीं रही, मैं अपना ताज और राजदंड आपको सौंपता हूँ | मैं अब आप लोगों में से एक बनकर रहूँगा | मैं भी एक आम आदमी हूँ, लेकिन एक आम आदमी की तरह मैं तुम्हारे साथ मिलकर काम करूँगा ताकि हमारी ये जमीन शायद और अच्छी बन जाए | राजा की कोई जरुरत नहीं है | आओ खेतों और अंगूर के बागों की तरफ चलें और मिलजुलकर काम करें | बस आप लोग मुझे बताएं कि किस खेत या किस बाग़ में मुझे जाना चाहिए | अब आप सब राजा हैं |"

और सारे लोग अचंभित हो गए, और मौन छा गया, क्योंकि वो राजा जिसे वे अपने असंतोष के लिए जिम्मेदार मानते थे अपना ताज और अपना राजदंड उन्हें सौंप रहा है और एक आम आदमी बन गया है |

तब हर एक अपने रास्ते चला गया, राजा किसी के साथ एक खेत की ओर चला गया |

लेकिन सादिक का राज्य बिना राजा के अच्छी तरक्की नहीं कर पाया, और असंतोष के बादल फिर से उनकी जमीन के ऊपर मंडराने लगे | लोग बाजारों में अक्सर ये कहकर अपना दुखड़ा रोया करते कि उनके पास एक राजा है राज्य करने के लिए | और बड़े बूढ़े और जवान सबने एक सुर में कहा , "हम अपना राजा बनायेंगे |"

और वे राजा को ढूँढने लगे और उसे एक खेत में मेहनत करते हुए पाया, और उन्होंने उसे उसकी गद्दी पर बिठाया, उसका ताज और उसका राजदंड उसे सौंप दिया | और उन्होंने कहा, "अब शक्ति और न्याय के साथ इस राज्य को चलाओ |"

और उसने कहा, "मैं वास्तव में पूरी शक्ति के साथ राज्य करूँगा, और स्वर्ग और दुनिया के भगवान् मुझे आशीर्वाद दें ताकि मैं न्याय के साथ राज्य कर सकूँ |"

अब, उसके सामने कुछ आदमी और औरतें आयीं और उन्होंने उससे एक व्यापारी की शिकायत की जिसने उनसे दुर्व्यवहार किया, और जिसके लिए वे महज एक ग़ुलाम थे |

और राजा ने तत्काल उस व्यापारी को अपने सामने बुलाया और कहा, "भगवान् के तराजू में एक आदमी की जिंदगी उतनी ही वजनदार है जितनी कि दूसरे की | और क्योंकि तुम उनकी जिंदगी का वजन नहीं जानते जो लोग तुम्हारे खेतों या तुम्हारे अंगूर के बागों में काम करते हैं, तुम इस राज्य से निकाले जाते हो, और तुम्हे हमेशा हमेशा के लिए ये राज्य छोड़ना होगा |"

अगले ही दिन और लोग राजा के पास आये और उसे पहाड़ों के दूसरी ओर रहने वाली एक जमींदार की निर्दयता के बारे में बताया, और कैसे उसने उन्हें उनके दुर्दिनों में ला पटका | उसी समय जमींदार को दरबार में लाया गया, और राजा ने उसे भी देशनिकाला दे दिया, कहा, "वो लोग जो हमारे खेतों को जोतते हैं और हमारे अंगूर के बागों की रक्षा करते हैं हम जोकि सिर्फ उनका अन्न खाते हैं, और उनके शराबखाने की वाइन पीते हैं से कहीं ज्यादा कुलीन हैं | और क्योंकि तुम यह नहीं जानते हो, तुम्हें यह भूमि छोडनी होगी और इस राज्य से कहीं दूर रहना होगा |"

तब कुछ आदमी और औरतें आयीं जिन्होंने कहा कि बिशप ने उनसे पत्थर उठवाए और उन्होंने बड़े गिरजाघर के लिए पत्थर ढोये, तब भी उसने उन्हें कुछ नहीं दिया, हालांकि वे जानते थे कि बिशप का संदूक सोने चांदी से भरा हुआ है, जिस समय वे खुद भूख से खाली थे |

और तब राजा ने बिशप को पेश होने को कहा, और जब बिशप आया, तो राजा ने उससे कहा, "जो सलीब तुम अपने सीने पे पहनते हो इसका मतलब दूसरों को जिंदगी देना होना चाहिए | लेकिन तुम उनकी जिंदगी ले रहे हो और उन्हें कुछ नहीं दे रहे हो | इसलिए तुम्हें इस राज्य को छोड़ना होगा और कभी वापस नहीं आना |"


इस तरह से हर दिन आदमी और औरतों का झुण्ड राजा के पास अपनी समस्या बताने आता था | और हर दिन कुछ अत्याचारियों को उस भूमि से बेदखल किया जाता |

और सादिक के लोग आश्चर्यचकित हुए, और उन्हें दिल में बेहद ख़ुशी हुई |

और एक दिन बड़े बूढ़े और जवान आये और उन्होंने राजा का महल घेर लिया और उसे पुकारने लगे | और वह नीचे उतरा हाथ में ताज और दूसरे हाथ में अपना राजदंड लेकर |

और वह उनसे बोला, अब, आप लोग मुझसे क्या चाहते हैं ? रुको, मैं तुम्हें वह वापस कर दूँ, जो तुमने मुझे सौंपा था |"

लेकिन वे लोग चिल्लाये, "नहीं, नहीं, आप ही हमारे यथोचित राजा हैं | आपने इस धरती को साँपों से खाली किया, और आपने ही सब भेड़ियों को खत्म किया | और हम यहाँ पर आपका स्वागत करते हैं तथा गीतों के जरिये आपका धन्यवाद करना चाहते हैं | आपका राजदंड हमेशा यश पाए, और आपका ताज़ हमेशा बना रहे |"

तब राजा ने कहा, "नहीं, मैं नहीं, आप लोग खुद ही राजा हैं | जब आप लोगों ने मुझे कमजोर और बुरा शासक समझा, तब आप लोग खुद ही कमजोर थे और बुरा शासन कर रहे थे | और अब क्योंकि तुम ऐसा चाह रहे हो इसलिए राज्य तरक्की कर रहा है | मैं सिर्फ आप लोगों के मन का एक विचार हूँ, और मेरा अस्तित्व आपके कर्म में निहित है | शासक जैसी कोई चीज नहीं होती | केवल शासित ही मौजूद होते हैं अपने आप पर शासन करने के लिए |" 

और राजा अपने ताज और अपने राजदंड के साथ दुबारा महल के अन्दर चला गया | और सभी बड़े बूढ़े और जवान अपने अपने रास्ते चले गए और वे सभी संतुष्ट थे |

और हर एक ने अपने आप को राजा महसूस किया जिसके एक हाथ में उसका ताज़ है और दूसरे हाथ में राजदंड |


शनिवार, 16 अप्रैल 2011

शरीर और आत्मा

एक आदमी और एक औरत एक खिड़की के पास बैठे थे जो कि बसंत की ओर खुलती थी | वे एक दूसरे के नजदीक बैठे थे, और औरत कहती है, "मैं तुमसे प्यार करती हूँ | तुम खूबसूरत हो, और पैसे वाले हो, और तुम हमेशा अच्छे कपडे पहनते हो |"

और आदमी ने कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ | तुम एक खूबसूरत ख़याल हो, ऐसी चीज़ जिसे हाथों में समेटा नहीं जा सकता, और मेरे सपनों का गीत हो |"

लेकिन औरत गुस्से में उससे दूर हटी, और उसने कहा, "जनाब, आप अभी यहाँ से चले जाइए | मैं कोई ख़याल नहीं हूँ, और मैं कोई तुम्हारे सपनों में गुजरने वाली चीज़ नहीं हूँ | मैं एक औरत हूँ | और मैं चाहूंगी कि आप मेरी कामना करें, एक पत्नी, और आपके अजन्मे बच्चों की माँ के रूप में |"

और वे जुदा हो गए |
और आदमी अपने दिल में कह रहा था, "देखा मेरा एक और सपना भी अब धुंध में बदल गया |"

और औरत कह रही थी, "अच्छा, क्या आदमी है जो मुझे धुंध और सपने में बदलता है |"



सोमवार, 11 अप्रैल 2011

नबी और बच्चा

एक बार एक दिन शरिया नबी एक बगीचे में एक बच्चे से मिला | बच्चा दौड़ता हुआ उनके पास आया और बोला, "आपका दिन शुभ हो, श्रीमान ," और तब नबी ने कहा, "आपका भी दिन शुभ हो |" और एक पल बाद, "आप अकेले लग रहे हैं |"

तब बच्चे ने हंसी और ख़ुशी से कहा, "अपनी दाई से छुपने में काफी समय लगता है | उसे लगता है कि मैं उस बाड़े के पीछे हूँ; लेकिन मैं तो आपके सामने हूँ न ?" तब उसने नबी के चेहरे पर देखा और कहा, "आप भी तो अकेले हैं | आप अपनी दाई से कैसे छुपे ?"

नबी ने जवाब देते हुए कहा, "वो दूसरी बात है | सच ये है कि मैं उससे देर तक छुपा नहीं रह पाता | पर अब, जब मैं इस बगीचे में आया था,  तो वह मुझे बाड़े के पीछे ढूंढ़ रही थी |"

बच्चे ने ख़ुशी से तालियाँ बजायी, और चिल्लाया, "तो आप भी मेरे जैसे ही हो ! छुपना अच्छा लग रहा है न ?" और तब उसने पूछा, "आप कौन हो ?"

और तब आदमी ने जवाब दिया, "लोग मुझे शरिया नबी कहते हैं | और आप बताओ, आप कौन हो ?"

"मैं तो सिर्फ मैं हूँ, " बच्चे ने कहा, "और मेरी दाई मुझे ढूंढ़ रही है और उसे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ |"

तब नबी ने आसमान की ओर देखते हुए कहा, "मैं भी अपनी दाई से भाग आया हूँ, लेकिन मुझे पता है कि वह मुझे ढूंढ़ लेगी |"

और तब बच्चे ने कहा, "मुझे पता है कि मुझे भी मेरी दाई ढूंढ़ लेगी |"

उसी समय बच्चे का नाम लेती एक स्त्री की आवाज सुनाई दी, "देखो," बच्चे ने कहा, "मैंने कहा था न कि वह मुझे ढूंढ़ लेगी |"

उसी समय एक दूसरी आवाज सुनाई दी, "तुम कहाँ हो , शरिया ?"

और नबी ने कहा, "देखो मेरे बच्चे, मुझे भी उन्होंने ढूंढ़ लिया है |"

और ऊपर की ओर अपना चेहरा उठाकर, शरिया ने जवाब दिया, "मैं यहाँ हूँ |"


बुधवार, 30 मार्च 2011

साधू और जानवर

एक बार कहीं हरी पहाड़ियों के बीच एक साधू रहता था | वह निर्मल आत्मा तथा स्वच्छ ह्रदय वाला था | और जमीन पर चलने वाले जानवर और आसमान में उड़ने वाले पक्षी सभी उसके पास आते थे और वह उनसे बातें करता था | वे बेहद प्रसन्नता से उसे सुना करते थे, और उसके आसपास जमा हो जाते थे, और रात घिर जाने तक नहीं जाते | तब वह उन्हें आशीर्वाद देकर उनके घर भेज देता, हवाओं और जंगलों में |

एक शाम जब वह उनसे प्रेम के बारे में बात कर रहा था, एक चीते ने अपना सर उठाया और साधू से कहा, "आप हमसे प्रेम के बारे में कह रहे हैं | महोदय, हमें बताइए, आपकी प्रेमिका कहाँ हैं ?"

और तब साधू ने कहा, "मेरी कोई प्रेमिका नहीं है |"

तब पशु पक्षियों के झुण्ड से आश्चर्य का शोर उठने लगा, और वे आपस में कहने लगे, "ये कैसे हमें प्रेम के बारे में बता सकता है जबकि ये खुद कुछ भी नहीं जानता ?" और वे सभी सर झुका कर शान्ति से उसे अकेला छोड़कर चले गए |
 
उस रात साधू चटाई पर औंधे मुंह लेटा, और छाती पर हाथ मारकर ज़ार ज़ार रोया |



रविवार, 27 मार्च 2011

कड़कती बिजली






एक तूफानी दिन, एक ईसाई पादरी गिरजाघर में था, और तभी एक गैर ईसाई महिला आई और उसके सामने खड़ी हुई, और उसने कहा, "मैं ईसा को नहीं मानती हूँ, क्या मेरे लिए नरक की यातना से बचने का कोई मार्ग है ?"


और पादरी ने उस महिला को देखा, और उसने उसे ज़वाब देते हुए कहा, "नहीं, मोक्ष का मार्ग केवल उन लोगों के लिए है, जिनका ईसाई मान्यता के अनुसार पानी और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा हुआ हो |"


और जब वह ये कह रहा था उसी समय आसमान से बिजली कडकी और गिरजाघर के ऊपर गिर गयी, गिरजाघर में आग लग गयी |


शहर के लोग दौड़े दौड़े आये, और उन्होंने उस महिला को बचा लिया | लेकिन पादरी आग का भोजन बन चुका था | 

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

दो रानियाँ





शावाकिस राज्य में एक राजा रहता था, और उसकी प्रजा उससे बहुत प्यार करती थी , पुरुष और स्त्री और बच्चे सभी | यहाँ तक की पशु पक्षी भी उसे सलाम करने आते थे |


लेकिन सभी लोग आपस में कहते थे, कि उसकी पत्नी, शावाकिस की रानी उससे प्यार नहीं करती; नहीं , बल्कि वह उससे नफरत करती है |


एक बार पडोसी राज्य की रानी , शावाकिस की रानी से मिलने के लिए आई | दोनों बेहद गर्मजोशी से मिले, और बातें करने लगीं | धीरे-धीरे उनकी बातों में अपने अपने पति का जिक्र आया |


और शावाकिस की रानी ने पूरे उत्साह से कहा, "कई साल तुम्हारी शादी को हो गए हैं , लेकिन आज भी तुम अपने पति के साथ बेहद खुश हो, ये देखकर मुझे कभी कभी ईर्ष्या होती है | मैं तो अपने पति से नफरत करती हूँ | वह सब लोगों का है , बस मेरा नहीं | मैं सही में इस दुनिया की सबसे नाखुश स्त्री हूँ |"


और तब मेहमान रानी ने उसकी ओर देखा और कहा, "सखि , सच ये हैं कि तुम अपने पति, शावाकिस के राजा से बहुत प्रेम करती हो | और, तुमने उन्हें हासिल किया है, और अपना बना के रखा है बिना किसी आडम्बर के, जबकि किसी स्त्री में यौवन उतने समय तक ही रहता है, जितना कि बाग़ में बसंत | लेकिन , मैं और मेरे पति , दोनों दया के पात्र हैं क्योंकि हम मूक धैर्य से सिर्फ एक दूसरे को बर्दाश्त करते हैं, और तुम और बाकी लोग इसे खुशियाँ समझ लेते हैं |"

मंगलवार, 22 मार्च 2011

मेले में





छोटे कस्बे की बेहद खूबसूरत एक लड़की, मेला देखने के लिए आई | उसके गालों पर गुलाब की लालिमा थी , सूर्यास्त मानों उसके बालों में होता हो, और भोर उसके होंठों में मुस्कुराती हो |


इक खूबसूरत अजनबी के निगाह में आते ही सारे नवयुवक तरह तरह के बहानों से उससे मिलने आने लगे | कोई उसके साथ नाचना चाहता था, कोई दूसरा उसके सम्मान में केक काटना चाहता था | सभी उसके कुमुदनी जैसे गालों को चूमना चाहते थे, आखिर ऐसा कौन होगा जो ये नहीं चाहेगा |


बेचारी लड़की को युवकों का व्यवहार देखकर सदमा सा लगा, और उसे सारे लड़के बुरे से मालूम हुए | उसने उन्हें डांटा, कुछेक को थप्पड़ भी मारा | उसके बाद वह वहाँ से भाग गयी |


और घर आते हुए, उस शाम रोते हुए उसने अपने दिल में कहा, "घृणा होती है मुझे, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग हैं | बरदाश्त की हर हद से बाहर |"


साल गुजरा , इस दौरान उस खूबसूरत लड़की ने बहुत से मेलों और उन युवकों के बारे में सोचा | एक दिन वह फिर से उस मेले को देखने गयी | आज भी वह उतनी ही खूबसूरत लग रही थी, जैसे गुलाब की लालिमा उसके गालों पर, सूर्यास्त उसके बालों पर होता हो , और जैसे भोर उसके होंठों पर मुस्कुराती हो |


लेकिन इस बार लड़कों ने उसे देखने के बाद सर झुका लिया , देखकर अनदेखा करने लगे | और पूरा दिन उस लड़की ने अपने को काफी अनचाहा और अकेला महसूस किया |


सांझ के झुटपुटे में घर की ओर जाने वाले रास्ते पर वह लड़की अपने दिल में बहुत रोई, "मुझे घृणा होती है, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग है | बर्दाश्त की हर हद से बाहर |"



सोमवार, 21 मार्च 2011

आँसू और हँसी





नील नदी के किनारे, सांझ के झुटपुटे में, सियार घड़ियाल से मिला और उन्होंने रूककर एक दूसरे को नमस्ते किया |


सियार ने कहा, "सब कैसा चल रहा है, जनाब ?"


घड़ियाल ने जवाब दिया, "बहुत बुरा वक़्त है | कभी कभी अपने दुख दर्द से मैं रोने लगता हूँ, और बाकी लोग कहते हैं, 'ये कुछ नहीं बस घडियाली आँसू हैं |' ये बात मुझे इतनी चुभती है कि क्या बताऊँ |"


तब सियार ने जवाब दिया, "तुम अपने दुख, दर्द की बात करते हो पर एक बार जरा मेरे बारे में भी तो सोचो | मैं इस दुनिया की खूबसूरती, इसके अचरजों, और इसके चमत्कारों को निहारता हूँ, और बहुत खुश होता हूँ | हँसता हूँ, बेहद जोर जोर से, जैसे दिन का उजाला चारों ओर फैलता है | और बाकी लोग कहते हैं, 'ये कुछ नहीं बस सियार की हुआं-हुआं है |'"



रविवार, 20 मार्च 2011

प्रेमगीत





कवि ने प्रेमगीत लिखा, बेहद खूबसूरत, और उसने इसकी कई सारी नक़ल तैयार की, और अपने दोस्तों और जानने वालों को, पुरुष और स्त्री दोनों को, यहाँ तक कि एक लड़की जिससे वह सिर्फ एक ही बार मिला था और जो पहाड़ों के दूसरी ओर रहती थी उसे भी, वो गीत भेज दिया |


और एक-दो दिन बाद एक संदेशवाहक उस लड़की की ओर से एक पत्र लेकर आया | पत्र में उसने लिखा था, "मैं तुम्हें यकीन दिलाना चाहती हूँ, कि जो प्रेमगीत तुमने मेरे लिए लिखा है, उसने मेरे दिल को छू लिया है | आओ, और मेरे माता पिता से मिलो, और उसके बाद हमें अपनी सगाई की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए |"


कवि ने जवाबी पत्र लिखा, और उसमे उसने कहा, "मेरे दोस्त, यह एक कविह्रदय से निकला सिर्फ एक प्रेमगीत है, जो हर पुरुष द्वारा हर स्त्री के लिए गाया गया है |"


तब उस लड़की ने कवि को दुबारा पत्र लिखा और कहा, "झूठे और मक्कार ! शब्दों का पाखण्ड करने वाले ! आज से क़यामत के दिन तक मैं सभी कवियों से नफरत करती रहूंगी |"


बुधवार, 16 मार्च 2011

उकाब और अबाबील





एक अबाबील और एक उकाब (गरुड़) पहाड़ी चोटी पर मिले | अबाबील ने कहा, "आपका दिन शुभ हो, श्रीमान !" और उकाब ने उसकी ओर हिकारत भरी नजरों से देखा और धीमे से कहा, "दिन शुभ हो |"


और अबाबील ने कहा, "मुझे आशा है कि आपकी जिंदगी में सब ठीक चल रहा है |"


"हाँ" उकाब ने जवाब दिया "हमारे साथ सब सही चल रहा है | लेकिन क्या तुम जानते नहीं कि हम पक्षियों के बादशाह हैं, और तुम्हें तक तक हमसे मुखातिब नहीं होना चाहिए जब तक हम खुद तुम्हें इजाज़त न दें ?"


अबाबील ने कहा, "मेरे ख़याल से हम सब एक ही परिवार से हैं |"


उकाब ने नफरत से उसे देखा और कहा, "ये तुमसे किसने कहा कि हम और तुम एक ही परिवार से हैं ?"


तभी अबाबील ने जवाब दिया, "और मैं आपको बता दूँ, कि मैं आपसे कहीं अधिक ऊंचा उड़ सकता हूँ, मैं गा सकता हूँ तथा दुनिया के बाकी प्राणियों को ख़ुशी दे सकता हूँ | और आप न तो सुकून देते हैं , न ख़ुशी |"


उकाब को गुस्सा आ गया, और उसने कहा, "सुकून और ख़ुशी ! क्षुद्र अहंकारी जीव | अपनी चोंच के एक हमले से मैं तुम्हारा नामोनिशान मिटा सकता हूँ | आकार में मेरे पंजों के बराबर भी नहीं हो तुम |"


यह सुनते ही अबाबील उड़ कर उकाब की पीठ पर बैठ गया | और उसके पंख नोचने लगा | उकाब अब परेशान हो गया था, और तेज़ी से ऊंची उड़ान भरने लगा ताकि अबाबील से छुटकारा पाया जाए | लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली | आख़िरकार, हारकर वह उसी पहाड़ी चोटी की चट्टान पर गिरकर अपने भाग्य को कोसने लगा | 'क्षुद्र जीव' अभी भी उसकी पीठ पर सवार था |


उसी समय वहाँ से एक छोटा कछुआ गुजरा, ये दृश्य देखकर वह जोर से हँसा, और इतनी जोर से हँसा कि दोहरा होकर पीठ के बल गिरते गिरते बचा |


उकाब ने कछुए की तरफ नीचे देखा और कहा, "जमीन पर रेंग के चलने वाले, तुम्हें किस बात पर इतनी हँसी आ रही है ?"


और तब कछुए ने जवाब दिया, "मैं देख रहा हूँ कि तुम घोड़े बन गए हो , और वो छोटी चिड़िया तुम पर सवारी कर रही है, छोटी चिड़िया तुम दोनों में बेहतर साबित हो रही है |"


ये सुनकर उकाब ने उससे कहा, "जाओ, जाओ | अपना काम करो | ये मेरे भाई अबाबील और मेरे बीच की बात है | ये हमारे परिवार का मामला है |"


[रोब पाल्मर की बाल्ड ईगल गूगल सर्च से ली गई है]

गुरुवार, 10 मार्च 2011

लिबास






एक बार सुन्दरता और कुरूपता समंदर के किनारे मिले, उन्होंने एक दूसरे से कहा , "चलो , थोड़ा समंदर में नहा लें |"


उन्होंने अपने कपडे उतारकर एक जगह रखे और पानी में तैरने लगे | और कुछ देर बाद, कुरूपता तट पर वापस आकर और खुद को सुन्दरता की पोशाक में संवारकर और चुपके से वहाँ से चला गया |


और कुछ समय बाद सुन्दरता भी समंदर से बाहर आई, अपनी पोशाक उसे वहाँ पर नहीं मिली | उसे अपनी अवस्था पर काफी शर्म आ रही थी , इसलिए उसने कुरूपता की ही पोशाक पहन ली | और वह अपने रास्ते चली गयी |


और उस दिन के बाद से लोग उन दोनों में , एक को दूसरा समझने की ग़लती करते हैं |


फिर भी कुछ है जिन्होंने सुन्दरता के चेहरे को ध्यान से देखा है और उसके कपड़ों के बावजूद वे उसे पहचान लेते हैं | और कुछ हैं जिन्होंने कुरूपता के चेहरे को जाना है, और उसके कपडे भी उनकी आँखों में धूल नहीं झोंक पाते |



सोमवार, 7 मार्च 2011

यायावर





चौराहे पर वह मुझे मिला , चोगा पहने, छड़ी का सहारा लिए | उसके चेहरे पर दर्द साफ़ नुमांया हो रहा था | हमने एक दूसरे का अभिवादन किया, और तब मैंने उससे कहा, "कृपया मेरे घर आकर कुछ दिन मेरे मेहमान बनें |"


उसने स्वीकार किया |


मेरी पत्नी और बच्चे, घर की देहरी पर ही उससे मिले | उन्हें देखकर वह मुस्कुराया, मेरे घरवालों को भी उसका आना भला लगा |


उसके बाद हम लकड़ी के एक तख्ते पर बैठ गए | उसकी शांति और रहस्यमयता की वजह से हमें उसके साथ बैठकर काफी सुकून महसूस हुआ |


रात्रिभोज के बाद हम अलाव के पास बैठ गए, और मैंने उससे उसकी पिछली यात्राओं के बारे में पूछा |


उस रात और उसके अगले दिन उसने हमें कई किस्से सुनाये, लेकिन जो कहानियाँ मैं अभी लिख रहा हूँ वे उसके कडुवे अनुभव के किस्से हैं , हालांकि वो खुद बहुत दयालु था | ये किस्से उसके रास्तों की गर्द और धैर्य के किस्से हैं |


और तीन दिन बाद वो चला गया तो उसका जाना हमें किसी मेहमान का जाना नहीं लगा, बल्कि किसी अपने का ही थोड़ी देर के लिए बगीचे में सैर के लिए जाना जैसा लगा, जो अभी तक वापस नहीं आया है |


पाठकों के नाम एक ख़त

हिंदी में बहुत कुछ लिखा गया है, लिखा जा रहा है | मजेदार बात ये है कि अच्छा भी है | फिर भी, विश्व साहित्य की बहुत सी कृतियों को हिंदी में अनुवाद नहीं किया गया है | अनुवाद की मेरी कोशिश इस चिट्ठे पर जारी रहेंगी | अभी कुछ फुटकर आसान अनुवाद किये जायेंगे | आप लोगों के प्यार और ख़ुलूस को मद्देनज़र रखकर ही सिलसिला आगे बढ़ाया जाएगा | विश्व साहित्य के कुछ दुर्लभ नगीनों को इसमें जगह दी जायेगी | मुझे उम्मीद है मेरी कोशिशों को आप पाठकों का भरपूर प्यार मिलेगा | 

-- आपका ,
नीरज बसलियाल