एक बार सुन्दरता और कुरूपता समंदर के किनारे मिले, उन्होंने एक दूसरे से कहा , "चलो , थोड़ा समंदर में नहा लें |"
उन्होंने अपने कपडे उतारकर एक जगह रखे और पानी में तैरने लगे | और कुछ देर बाद, कुरूपता तट पर वापस आकर और खुद को सुन्दरता की पोशाक में संवारकर और चुपके से वहाँ से चला गया |
और कुछ समय बाद सुन्दरता भी समंदर से बाहर आई, अपनी पोशाक उसे वहाँ पर नहीं मिली | उसे अपनी अवस्था पर काफी शर्म आ रही थी , इसलिए उसने कुरूपता की ही पोशाक पहन ली | और वह अपने रास्ते चली गयी |
और उस दिन के बाद से लोग उन दोनों में , एक को दूसरा समझने की ग़लती करते हैं |
फिर भी कुछ है जिन्होंने सुन्दरता के चेहरे को ध्यान से देखा है और उसके कपड़ों के बावजूद वे उसे पहचान लेते हैं | और कुछ हैं जिन्होंने कुरूपता के चेहरे को जाना है, और उसके कपडे भी उनकी आँखों में धूल नहीं झोंक पाते |
chhoti si kahani...kitni badee baat
जवाब देंहटाएंबस वो आँखें होनी चाहियें , जो सच को देख सकें ।
जवाब देंहटाएंaaj hi ye blog dekha....bahut achha kiya apne......apke murid hain..........so achha
जवाब देंहटाएंlikha kahne ki jaroorat nahi....likhte rahen...
aur haan........apse request......kabadkhana par
apke saath 'lapoojhanna' wale ashok paney ji
se 'lafatoo' ko lane ke liye kahen.....
sadear
saundarya kisi bhi poshak mein ho. parkhi pehchan hi leta hai. "Palkon ke sapne" par aane ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंहोली पर आपको शुभकामनाये !!
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